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26 Feb 2022 · 1 min read

होली में चली चला गांवें

जब माह फागुनवा लागे
मनवां मोर घर पर भागे
जब बहेले फगुन बयरिया
मनवा चेतक अस लागे
संवरिया होली में चली चला गांवे
कि होलिया गाँव के ही मन भावे

चित चोर हो जाला मौसम
जब सूरज होला मद्धम
सूरज लालिमा बिखेरे
सांझ हो जाला अनुपम
कि तनिको मन न लगे एही ठावें
संवरिया होली में चली चला गांवे

जब बहे पवन पुरवइया
फिर धूप भी लागे छईयां
भीनी खुशबू फसलन के
मनवा बहकावे सईंयां
कोयलिया मधुर ही तान लगावे
संवरिया होली में चली चला गांवे
-सिद्धार्थ गोरखपुरी

Language: Bhojpuri
Tag: गीत
296 Views

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