है प्यार तो कहिये कि तुम्हें प्यार है हम से
है प्यार तो कहिये कि तुम्हें प्यार है हम से
इतनी सी गुज़ारिश है हमारी तो सनम से
दिखता है ज़माने में जहाँ भी है जो जैसा
हैरान परेशान वो लिखता है क़लम से
बैठा है वो ख़ामोश तेरी याद में गुम है
वो आज भी तकता है तेरी राह कसम से
इन्सान कोई भी हो परिन्दा भी हो कोई
अपना है मुहब्बत से नहीं ज़ुल्मो-सितम से
लोगों न उसी से तो सलाहें भी लीं अक्सर
सीखो तो कभी तुम भी ज़रा उसकी फ़हम से
व्यापार से इस बार गुज़ारा भी नहीं है
नुक़सान हुआ रोज़ मुनाफ़ा भी है कम से
जब ज़ह्’न अंधेरे में कोई साथ में न हो
मिलती है सदा राह मुझे दैरो-हरम से
राज़ी है अगर वो तो कोई ग़म भी नहीं है
हैं काम सही मेरे तो मालिक के करम से
आने से सदा आपके आती हैं बहारें
‘आनन्द’ की ख़ुशियाँ हैं सभी आपके दम से
– डॉ आनन्द किशोर