हे ! माँ
हे ! माते !
तू क्षितिज को छू सकती है ।
ऐसा किया भी, है तूने कई बार। जगजननी बनकर किया है तूने। सकल विश्व का ही उद्धार।
सर्वस्व मिलेगा तेरे द्वार।
बंटता तेरे दर पर प्यार।
जग का इक इक बालक,
तुमसे ही जन्मा है माता। देवि तू है इस, चराचर की
है तू लेखविधाता।
सहनशीलता तुझसे अधिक,
न हमने पाई सृष्टि में। त्यागमयी तुझसे अधिक न,
कोई मेरी दृष्टि में। करुणा की साक्षात प्रतिमूर्ति,
ही है तेरा परिचय । ममतामयी है तू प्यारी मां ,
स्नेह है तेरा अजेय । ओ मां तू धन्य है ! ,
तेरी जय!
तेरी जय, तेरी जय जय !
—रंजना माथुर दिनांक 06/07/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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