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14 Oct 2020 · 1 min read

हृदय बांध

फुट चुका अब हृदय बांध उठ – उठकर प्रेम लहर।
मानस – अम्बुधि में छायी जैसे कोई कहर।।

सपनीली चादर ओढ़े वो आती
बार – बार उसपे ही नयन जाती थी ठहर ।

सुकुं की खुशबू फैलाती थी हर सहर ।
चांद सी सूरत में डूब गया दिल का शहर ।।

वेदना में तड़प रही रूह स्वयं
यही अब बन गई खुद जहर।।

फुट चुका अब हृदय बांध उठ – उठकर प्रेम लहर।
मानस – अम्बुधि में छायी जैसे कोई कहर।।

Language: Hindi
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