हुये शहीद जो उनको सलाम करते हैं
हुये शहीद जो उनको सलाम करते हैं
दिलों से जान से हम एहतिराम करते हैं
वतन के काम जो बस सुब्हो-शाम करते हैं
वो ही तो देश का ऊँचा ही नाम करते हैं
वही तो नेक ज़माने में नाख़ुदा हैं वही
किसी के वास्ते जो जाँ तमाम करते हैं
कवि भले से हैं शायर तमाम हैं अच्छे
वतन की शान में हर पल कलाम करते हैं
सफल उन्हीं का है जीवन भी लोग वो सच्चे
जो दूसरों के लिये ही तो काम करते हैं
करें न फ़िक़्र वो अपनी करें ज़माने की
सभी के वास्ते जो इंतिज़ाम करते हैं
वतन में बाढ़, सुनामी, कहीं पे हो झगड़ा
जिधर भी उनको बुलाया है गाम करते हैं
अगर अदू है तो ‘आनन्द’ सर क़लम कर दे
अगर है दोस्त तो बस एहतिशाम करते हैं
शब्दार्थ:- अदू = दुश्मन, एहतिशाम = शील/शिष्टाचार
डॉ आनन्द किशोर