हुई उससे मेरी अनबन नहीं है
हुई उससे मेरी अनबन नहीं है
मगर कुछ बोलने का मन नहीं है
है बारिश तेज पर सावन नहीं है
फ़क़त तन्हाइयाँ साजन नहीं है
वसीयत की हुई है मेहरबानी
बिना दीवार का आंगन नहीं है
लिपटते नाग हैं उसके बदन से
वही ख़ुश्बू मगर चंदन नहीं है
कलाई तो नहीं लगती है ख़ाली
वही कंगन मगर खनखन नहीं है
ख़यालों में कहीं खोया हुआ वो
यहाँ पर तन है उसका मन नहीं है
कोई बाज़ी कभी तो जीत पाते
मगर वो जीतने का फ़न नहीं है
अजब सा दरमियाँ उससे है रिश्ता
नहीं साथी मगर दुश्मन नहीं है
गुज़रती ज़िन्दगी मुफ़लिस की कैसे
मकां कपड़े कभी राशन नहीं है
सभी तो ढो रहे ‘आनन्द’ रिश्ते
किसी के दिल में अपनापन नहीं है
– डॉ आनन्द किशोर