*हिम्मत जिंदाबाद (कहानी)*
हिम्मत जिंदाबाद (कहानी)
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” हम तो न जाने कब से कह रहे हैं कि लड़कियों को ज्यादा मत पढ़ाओ। घर में रखो। चूल्हा-चौका सीख लें, बस इतना काफी है । पढ़-लिख कर कौन सा कलेक्टर बनना है ? ”
“जमाना खराब है । लड़कियाँ घर से बाहर निकली नहींं कि समझो उन पर धब्बा लग गया । जितना ज्यादा पढ़ेंगी ,उतनी ही शादी -ब्याह में मुश्किल आएगी । घर से बाहर कदम रखते ही लड़कियों को बुरी निगाहों का सामना करना पड़ता है । इससे अच्छा तो यही है कि घर पर बैठें और दो-चार दर्जा पढ़ लें, इतना काफी है ।”
गाँव की स्त्रियाँ आपस में एक साथ बैठकर कानाफूसी कर रही थीं। कारण यह था कि कल ही एक बड़ी दुर्घटना हो कर चुकी थी । गाँव की लड़की निरमा इंटर पास करने के बाद बी.एससी. करने के लिए डिग्री कॉलेज जाती थी । डिग्री कॉलेज गाँव में नहीं था । इसलिए एक बस डिग्री कॉलेज से चलकर गाँव तक आती थी और रास्ते में लड़कियों को बिठाती चली जाती थी ।निरमा के गांव में वह अकेली लड़की थी जिसने बीएससी करने का निश्चय किया था। पिता धर्मवीर लड़कियों को शिक्षित कराने के समर्थक थे । इसलिए लोगों की परवाह न करते हुए भी उन्होंने अपनी बेटी को बी.एससी. में प्रवेश दिलाया । खुद बस तक छोड़ने जाते थे । हाथ हिला कर टाटा कहते थे तथा प्रसन्नता पूर्वक घर को लौट आते थे।
धीरे धीरे निरमा का यह तृतीय वर्ष था। अब कुछ महीने बाद ही उसकी पढ़ाई पूरी होने वाली थी । मगर नियति को तो कुछ और ही मंजूर था ।अच्छी-भली गाँव से कॉलेज की बस में बैठ कर एक दिन निरमा कालेज तो पहुंची लेकिन कालेज से सकुशल अपने गांव नहीं लौट पाई। रास्ते में कुछ मनचलों ने उसे बस में बैठे-बैठे ही अपशब्द कहे । मनचले दो बाइकों पर सवार थे। मुश्किल से चार या पांच रहे होंगे । निरमा की बस में 10 – 12 विद्यार्थी थे । इन विद्यार्थियों ने निरमा के साथ छेड़खानी किए जाने का विरोध किया। परिणामस्वरूप बात बढ़ती चली गई । हाथापाई हुई ,फिर मनचलों ने जेब से चाकू निकाल ली और निरमा पर घातक प्रहार कर दिया । घायल करने के बाद मनचले भाग गए मगर उस बदनसीब पर तो मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा ।
अस्पताल तो पुलिस ले गई । इलाज शुरू हो गया । कुछ दिनों में निरमा ठीक हो जाएगी। मगर घर पर एक बड़ा सवाल यह शुरू हो गया कि निरमा की छोटी बहन सीमा को बी.एससी. में एडमिशन कराया जाए या नहीं ? अभी उसने इंटर पास किया था । बीएससी में अपनी बहन की भाँति वह भी दाखिला लेने की तैयारी कर रही थी। सोचा था कि कालेज की बस में बैठ कर रोज पढ़ने के लिए चली जाएगी और अपनी बहन के समान ही हँसते-खेलते वह भी बी.एससी. पूरी कर लेगी । मगर अब इन सब पर प्रश्न चिन्ह लगता दिख रहा था ।
निरमा के पिता धर्मवीर अस्पताल से जब लौटे तो बुझे कदमों से घर में प्रवेश किया । एक कोने में सीमा खड़ी थी । उसे मालूम था कि अब घर से बाहर निकल कर उच्च शिक्षा प्राप्त करने पर ग्रहण लग चुका है । जैसा माहौल है ,उसमें भला कौन माँ- बाप अपनी बेटी को मौत के मुँह में धकेलना चाहेंगे ? सीमा की आँखों से दो आँसू टपक पड़े । धर्मवीर की पैनी नजरों से वह आँसू छिपे न रह सके । झट बोल पड़े “बेटी सीमा ! तू फिक्र मत कर ! मैं तुझे जरूर पढ़वाऊंगा ।”
सुनते ही सीमा की माँ आरती गुस्से में आ गई । बोली “एक का हाल तो देख लिया ।अब दूसरे को भी क्या घायल करना है ? मनचलों की हिम्मत का तो सबको पता है।”
सुनकर धर्मवीर ने संयत स्वर में कहा “आरती ! मनचलों की हिम्मत बेशक बहुत ज्यादा है । लेकिन क्या हम उनके डर से बेटियों को पढ़ाना बंद कर देंगे ? ऐसे तो समाज में चोर और डाकू भी हैं ? तो क्या हम घरों में रहना छोड़ दें ? हत्यारे चारों तरफ घूम रहे हैं । क्या हम जिंदा रहने की अपनी इच्छा का भी परित्याग कर दें ? नहीं नहीं ! मैं सीमा को जरूर पढ़ाउँगा । मनचलों की ताकत से हम जरूर जूझेंगे और विजयी होंगे ।”
“यह सब किताबों की बातें हैं । आदर्शों में कुछ नहीं रखा है ! गांव में सब ने आपको समझाया ,मगर आप नहीं माने । निरमा की जान खतरे में डाल दी । अब मैं सीमा को मरने नहीं दूंगी । घर में ही छुपा कर रखूंगी। किसी की बुरी नजर उस पर नहीं पड़ पाएगी।”
” तुम गलत सोच रही हो आरती ! घर में छुपाने से कोई चीज बुरी नजर से नहीं बच पाती । हमें अपनी बेटियों को इतना ताकतवर बनाना है कि कोई उन पर बुरी नजर डालने से पहले सौ बार सोचे और घबरा जाए ।” फिर पुत्री सीमा की ओर मुड़ कर उन्होंने पूछा “सीमा ! तुम बताओ कि तुम्हारा फैसला क्या है ? जान जोखिम में डालकर भी पढ़ने जाओगी या घर में बैठ जाओगे ? ”
सीमा ने खुशी से मुस्कुराते हुए कहा “मैं जरूर पढ़ुंगी ,चाहे मुझे कितनी ही मुश्किलों का सामना क्यों न करना पड़े । अगर बुरी नीयत वाले हैं तो अच्छे लोगों की भी संसार में कमी नहीं है । और फिर ईश्वर भी तो सच का साथ देता है । हमें विजय जरूर मिलेगी। एक दिन गाँव की सब लड़कियाँ बस में बैठकर बी.एससी. करने जाएंगी और तब कोई मनचला उन्हें रास्ते में रोकने की हिम्मत नहीं कर पाएगा ।”
सीमा के हिम्मत से भरे हुए विचारों को सुनकर धर्मवीर ने उसे गले से लगा लिया । आरती भी भावुक हो गई । उसने भी आगे बढ़कर सीमा से कहा ” बेटी ! तू ठीक कह रही है । मैं तेरी हिम्मत को जिंदाबाद कहती हूँ।”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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