हित पर व्यंग्य कविता
अपना हित चाहोगे
गलत ही होगा.
जिसे कोई अजनबी खोजता है,
वह सार्वजनिक स्थल पर बसता है,
और जो ऐसे स्थलों को अपनी बपौती समझता है,
समझो,
वह अधर्मी है,
उसका निसर्ग से कौई ताल्लुक नहीं.
प्रमाण के लिए,
किसी मापदंड ईकाई की जरूरत नहीं,
कौन क्या पेश करता है.
सब फिजूल.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस