*** हिज्र की रात है ***
7.5.17 *** प्रातः 9.01
हिज्र की रात है और यादें तेरी
गिन-गिन तारे अब बीते ना रातें
अब कर रहमत इतनी मुझपर
मेरे दिल से निकल जा ज़ालिम
या मुहब्बत को सज़दा कर आजा
हिज्र की रात है उस पर तेरी यादें
जीने देती है ना मरने मुझको
आ पिला जा निगाहें-रूहअफजा
या पिया जा मुझको विष-प्याला
उतरा नही कई रोज-मुख-निवाला
क्या तेरे दिल-रहम अब नही है
कहने कोही दिलदार तुझे कहते हैं
दिलवाले यूंही मुझपे वहम करते है
शायद यूहीं दिलवाला मुझे कहते हैं
हिज्र की रात है और यादें तेरी
गिन-गिन तारे अब बीते ना रातें ।।
?मधुप बैरागी