” हिंदी “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
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मात्र हिंदी दिवस मनाने ,सीमित सरकारी आदेशों और यदाकदा संयुक्त राष्ट्र में हिंदी भाषणों से हिंदी को शीर्ष स्थान पर लाना असंभव प्रतीत होता है ! हम मानते हैं कि हमारी भोगोलिक परिदृश्य भिन्य हैं ! भाषाएँ अनेक हैं ! फिर भी हमारी चाल कछुए की भांति क्यूँ ? हम शंखनाद करने से कतराते क्यों हैं ? भाषाओँ का आदर तो करना चाहिए ! हम नहीं कहते अन्य भाषाओँ की अनदेखी करें ! पर हमारी पहचान बनी रहे और हम गर्व से कह सकें ‘ हिंदी हमारी भाषा है’ !
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
शिवपहाड़
दुमका
झारखण्ड
भारत