हिंदी हैं हम
हिंदू है हम, हिंदी हमारी मातृभाषा,
हिंदी ही है प्यार की परिभाषा।
सूरदास, कबीर, दिनकर, निराला,
महादेवी, हरिवंश की मधुशाला।
सारा काव्य मिलता हमको हिंदी में,
लेखकों, कवियों ने क्या क्या कह डाला हिंदी में।
चाहे वीर रस हो या हास्य रस या प्रेम रस,
आता है हिंदी में ही पढ़ने का संपूर्ण रस।
छंदों बंदों में बंधी हुई कोई कविता,
जैसे ऊंचे पर्वतों से बहती हुई कोई सरिता।
प्रेम पत्र लिखने और पढ़ने का मज़ा आता है हिंदी में,
जरा सी चूक हो जाती थी अगर एक बिंदी में।
दोहे लिखे कबीर, रहीम और सूरदास ने,
शकुंतला लिख डाली महाकवि कालिदास ने।
हिंदी के हर शब्द में है प्यार झलकता,
मम्मी को मां कहे और पापा को पिता जी तो है ज़ुबान से रस टपकता।
ब्रो को भैया बोले और सिस्टर को दीदी तो लगता कितना अपनापन है,
हिंदी बोली में माधुर्य और समर्पण है।
आइए आज प्रण लें हम सब कि हिंदी ही बोलेंगे,
ना किसी को कभी भाषा के तराज़ू में तोलेंगे।
हिंदी है हम वतन हिंदुस्तान है हमारा
हिंदी ही अपनाएंगे, ये है अपना नारा।