हिंदी में ही बोलिए
हिंदी में ही बोलिए
सिंधु के किनारे हिंद,
हिंद के निवासी आप,
गर्व कीजिए हुज़ूर,
हिंदी में ही बोलिए।
हिंद की मुखर वाणी,
जैसे खुद वीणा पाणी,
हिंदी ही तो है हुज़ूर,
हिंदी में ही बोलिए।
देवनागरी में सजी,
व्याकरण संग ढली,
आन- बान है हुज़ूर,
हिंदी में ही बोलिए।
सूर ,तुलसी व पंत,
दिनकर, प्रेमचंद्र,
कुर्बान हैं हुज़ूर,
हिंदी में ही बोलिए।
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जीवन
बीज देखो आद्रता को पी रहा,
और ऊष्मा को निरंतर जी रहा।
वह धरा के गर्भ में है पल रहा,
सब तरफ उत्साह का संबल रहा।
वह धरा पर अंकुरित होकर खड़ा।
पात चिकने और रोमांचित बड़ा।
पवन उसको प्रेम से पंखा झले।
सूर्य किरणें मिल रहीं उसके गले।
बन गया वह स्वस्थ तरु सुंदर नया,
पल्लवित पुष्पित घना हो छा गया।
भार से फल के, नमित मस्तक हुआ।
यात्रियों औ पक्षियों का गृह हुआ।
वक्त बीता पात सारे झड़ गए,
पंछियों से, नेह तज, सब उड़ गए।
ठूंठ बनकर आज एकाकी खड़ा,
था कभी वह लाड़ला सबका बड़ा।
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दोहा –
मात-पिता बूढ़े हुए , समझ रहे हैं रोज ।
वर्षा तो अब रुक चुकी ,छतरी बन गई बोझ ।
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इंदु पाराशर