हिंदी बिना
हिंदी है हिंदुस्तान की
भारतीय स्वाभिमान की
जहाँ जहाँ हैं हिंदुस्तानी
हिंदी भाषा मुॅह जुबानी
सारे जग में फैल चुकी
दुश्मन से भी नहीं रुकी
भूल यहाँ पर एक हुई
स्वार्थ सिद्धि की चाल नई
जन्म भूमि में मान नहीं
पहले थी वह शान नहीं
दूजे दर्जे पर ही जिंदा
राष्ट्र भाषा बनने का फंदा
अपनों से ही ठगी हुई है
मजबूरी में फंसी हुई है
याद दिलाती सदा गुलामी
देश धर्म पाते बदनामी
अंग्रेजी से प्यार हुआ है
पढ़ने का अभिमान हुआ है
हिंदी भाषा बोलने वाले
ठगा रहे सब भोले भाले
नियम कायदे खूब बनाते
अंग्रेजी को पढ़ नहीं पाते
पढ़े लिखे जो हिंदी भाषी
गुमशुम रहते छाई उदासी
हिंदी हिंदुस्तान की भाषा
फिर भी भूले सब परिभाषा
काम काज सारे सरकारी
बना रहे हिंदी से दूरी
निज भाषा से क्या मजबूरी
हिंदी बिना आजादी अधूरी ।
राजेश कौरव सुमित्र