हिंदी दिवस
सरसी छंद
हिंदी हिन्दू व हिन्दुस्तान ,
महिमा रही महान ।
मात रूप संस्कृत से उपजी ,
युगों रही पहचान ।
बावन अक्षर की गल माला ,
शब्द कोश भरपूर।
सहज सरल व्याकरणहि सम्मत,
सभी क्लिष्टता दूर ।
मन के भाव व्यक्त सब होते,
दुविधा होती छीण।
पढ़ना लिखना मर्म समझना,
हिंद भाषी प्रवीण ।
संस्कृत की पुत्री कहलाती,
वेद ज्ञान की गंग।
जब जब राज रहा परदेशी ,
हिंदी भाषी तंग।
आजादी को पाकर भैया,
नहीं रखा यह ध्यान ।
राष्ट्र भाषा बने भारत की ,
हिंदी का हो मान।
सो रही है देश की जनता,
सोती है सरकार।
अमृतोत्सव तो मना लिया है,
उठती नहीं पुकार ।।
हुई उपेक्षित हिंदी भाषा,
अंग्रेजी का गान।
कब भूली भारत की जनता,
निजता व स्वाभिमान
अब तो भारत में आजादी,
क्यों भाषा बर्बाद।
मातृ समान होती निज भाषा ,
नहीं आज क्यों याद।
अंक लुप्त सब ही हिंदी के,
अक्षर भी लाचार ।
हिंदी दिवस मनाते घर घर,
समझ न आता यार।
राजेश कौरव सुमित्र