हास्य व्यंग्य (सह संबंध बिठा लो)
सह संबंध बिठा लो आज
रेलगाड़ी पर हवाई जहाज
के पहिये चढा दो आज..
चुनाव है विचारधारा के मध्य
तुम किसी के नहीं हो.
नेताओं दांव लगा लो आज.
तुम हो तो धर्मनिरपेक्ष कौन बचेगा,
जिस मर्जी पर दांव लगा लो आज.
लोकतंत्र है, बस 27% प्रबंध करो तुम
माजरे चौकोणीय है…
एक मठाधीश पूरे वहर जितनी जमी पर रहता है.
एक मुखिया को सारा प्रशासन तवज्जो देता है..
चुनाव जीत ,पद पाकर, जनता को आफत समझता है
देख लो व्यवस्था,
एक नागरिक सबका पेट भरता है,
नेता फिर भी अपना, ख्याल रखता है.
पेंशन योजना बंद कर, खुद ठग ठग जनता को,
बन विधायक हर बार नई पेंशन जोड लेता है..
मिल रहा अथाह वेतन, कर्मचारी जलील क्यों.
उन्हीं से तो प्रशासन बनता और चलता है.
अ मेरे वतन के लोगों, तुम्हें कौन बताने आयेगा,
तुम कौन जगाने आयेगा, सोच समझ लो.
तभी अनुभव उभर कर कुछ सुधार आयेगा.
कब तक देते रहोगे परीक्षा,
हर बार पेपर लीक हो जायेगा.
जी.डी.पी ही नहीं, सरकारी संपदा बिक रही.
खजाने बंट कर, सिकुड़ रहे,
तुम्हारे पैसे से दांव खेल रहे.
पैट्रोल, गैस,रसोई और जी.एस.टी से.
जी भरकर लूट रहे.
संवाद गया विवाद बढ़ा.
न जाने कितने मासूम.
भव सागर से पार हुए.
सभ्यता संस्कृति और गिरावट सम्मान में आई है.
किस तरह छल कर, हक में सबकुछ हडफ लिया गया.
महापुरुष होते है सबके,उनके बंटवारे घाल लिए.
कहने को कहते रहो, खूब पूजा पाठ करो.
झूठो के आधार पर खडे, तुम्हारी सौंगध,, कैसी मिट्टी.
धरातल खाली है.
धरातल खाली है.
खुशबू रही न मिट्टी, पत्री रही न मिट्टी.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस