*हाल देखा सनम का ऑंखें नम गई*
हाल देखा सनम का ऑंखें नम गई
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हाल देखा सनम का ऑंखें नम गई,
देखते ही उन्हें झट सांसे थम गई।
मिल गई है सजा कर्म जो भी किया,
पल में न जाने कहाँ पर है छम गई।
बाँवरा मन कहीं पर भी टिकता नहीं,
यूँ बर्फ सी जिंदगी है क्यों जम गई।
आसमानी गर्जन से हम है सहम गए,
बिजली गिरते ही तो रोशनी धम गई।
छोड़ दी आशा जो है बची मनसीरत,
वो पुरानी यादें रग रग में है रम गई।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)