हालातों का पीर
भारत देश जहाँ बुलेट ट्रेन से होकर चाँद तक पहुँचने का सपना देखा जा रहा हो ,जहाँ दूरसंचार के चारो ओर फैले होने के बाद भी हम भूखे ,परेशान लोगो के आंकड़े नही जुटा पा रहे हो ,उस देश मे लोगो के पास आधार कार्ड है पर कोई ऐसी व्यवस्था नही है जो ये बता पाए कि किसके पास खाने को नही है या जीवन जीने का आधार नही है ।
पहले हम अपने को संभाल लें फिर विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर हों ।
मैंने व्यक्तिगत कभी नही सोचा था देश मे इतनी संख्या में ऐसा समुदाय है जो दिन की कमाई पर जिंदा है जिनके स्तर को सुधारने का हमारे पास कोई ठोस कदम नही है या यूं कहें कि वो समुदाय खुद शराब जैसे कुएं में डूबा हुआ है और ऊपर आने के लिए तैयार नही है लेकिन कम से कम हम तो उसे इस कुएं में जानबूझ कर ना ढकेले ….अपनी कमाई के लिए दूसरों की कमाई का ऐसा प्रयोग जिसमे केवल अपराध बढ़ता हो ,अत्याचार और परिवार की बचत खत्म होती हो , किसी राष्ट्र के लिए तरक्की वाला नही हो सकता ।
शराब पूर्णतः भारत से खत्म हो जिससे लोगो मे विवेक सही तरीके से प्रखर हो सके और वो अपनी तरक्की के साथ साथ परिवार और देश की तरक्की में भूमिका निभा सके ।
लेकिन उम्मीद है हम वक्त से सीख कर प्रकृति ,संस्कृति के अनुसार अपने को ढाल कर इस नाटक के किरदार को बखूबी अदा कर पाएंगे ।
वर्तमान हालातों पर मेरी कुछ पंक्तियाँ ……
हम अंजान थे इन हालातों के पीर से ।
चश्मा उतरते ही रूबरू हुए तस्वीर से ।
उड़े हम भी खुले आसमाँ में बहुत तेज,
भूल ये भी गए बंधे है वक्त की जंजीर से ।
मिश्ल -ए- फूल थी कई जिन्दगानियाँ यहाँ ,
काँटो के बीच बस मुस्कुराते रहे शरीर से ।
दिखावे का राजमहल जो चमकता था रोज,
उसे धोया गया था किसी के चक्षु नीर से ।
खुद खुदा बन कर्म पर यकीं कर सायक ,
तेज आगे निकल इस निष्ठुर तकदीर से ।
✍️ जय श्री सैनी ‘सायक’