हार मानूंगा नही।
मैं हार नही मानूंगा ।
मैं हार नही मानूंगा ।
मै हार नही मानूंगा ।
जीवन की डगर पर ।
किसी भी प्रहर पर ।
या मैं रहूं किसी भी प्रखर पर ।
सीखने की हद से गुजरता चला हूं ।
पथ का अपने प्रदर्शक बना हूं ।
जो है अज्ञेय उसे भी जानूंगा ।
मै हार नही मानूंगा ।
मै हार नही मानूंगा ।
चलता चला हूं चलता रहूंगा ।
दुनिया के मोङो पर न रूकूंगा ।
मंजिल जहां वही पर कदम ।
बढते रहे जब तक न पहुचूंगा ।
मै हार नही मानूंगा ।
प्रतिकार नही ठानूंगा ।
चाहे कर दे मुझे निराश ही कोई ।
आशा की ज्योति जलाए बढता रहूंगा ।
अपने विश्वास मे डूबे ही सही ।
छोड़ दे मुझको अंधेरे मे कही ।
दीया है जला जलता रहेगा ।
आंधी, तूफानो मे भी कायम रहेगा ।
वो बनके शोला जलता रहेगा ।
मै अपने धुन मे होकर मगन ।
मस्त फिजाओ मे खुशी के गीत गाता रहूंगा ।
मै हार नही मानूंगा ।
मै हार नही मानूंगा ।
जीत न मिलेगी जब तक ।
तब तक मै कुछ न कुछ ठानूंगा ।
लाख सितम सहकर भी आगे बढूंगा ।
ऊंची कितनी भी सीढी क्यो न हो ।
उस पर चढूंगा ।
अपने विश्वास के डोर पर सारे जोखिम झुलूंगा ।
गर कोई मनोबल तोङ भी दिया ।
फिर भी अपने को न कोई गम है ।
नई चाह, नई राह से आगे बढने का अभी भी दमखम है ।
गिरूंगा, उठूंगा पर चलता चलूंगा ।
पर हार नही मानूंगा ।
मै हार नही मानूंगा ।
जीवन सफर है चलते रहो तुम ।
गम के झोंको को सहते रहो तुम ।
रूक न जाना थककर कही ।
इस दुनिया से उलझकर कही ।
सब तुमको तो फसाएंगे ।
पर कबूतर की तरह ले उङना ।
तुम पुरे जाल को ही ।
हाथ किसी न तुम आना ।
विजय का केवल संकेत दिखाना ।
बस अपने ही मस्ती मे चलता जाऊंगा ।
पर हार नही मानूंगा ।
मै हार नही मानूंगा ।