हार फिर होती नहीं…
हार फिर होती नहीं…
~~°~~°~~°
मन ठान ले यदि जीत है ,
तो हार फिर होती नहीं…
सोचता है मन यदि ,
पर्वत शिखर की ऊचाईयाँ।
यदि देखता समुन्दर निकट ,
नापता फिर गहराईयाँ ।
घबराता है तब ही तो मन ,
ये नाकामियों की परछाईंयाँ।
सोचो नहीं तुम राह में ,
चाहे साथ हो तन्हाइयाँ ।
पथ सामने दुर्गम बना ,
पीछे कभी मुड़ना नहीं ।
मन ठान ले यदि जीत है ,
तो हार फिर होती नहीं…
अवसर की कैसी तलाश है ,
अवसर पड़ा हर रोज है ।
काबु खुद पर यदि सीख लें ,
तो अवसर अनोखा आज है।
आती है जिंदगी हर सुबह ,
मौत आती सिर्फ एकबार है।
सिर्फ शर्त एक ही जान लो ,
करो वक़्त की बर्बादी नहीं।
जब तलक ये साँसें बची ,
कभी मौत से डरना नहीं…
मन ठान ले यदि जीत है ,
तो हार जग में होती नहीं…
माना कि राहें है कठिन ,
मंजिल भी जिद्दी बन गए ।
किस्मत की राह रोड़े पडे़ ,
माथे पर शिकन हैं दे रहे ।
उदासी का आलम हर तरफ ,
हर हाल में मुस्कुरायेंगे ।
चिंगारी जो सुलगती नहीं ,
तप की तपिश से सुलगायेंगे ।
मृत्यु पास भी आ जाए तो ,
मन से कभी मरना नहीं…
मन ठान ले यदि जीत है ,
तो हार फिर होती नहीं…
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ३१ /१२/२०२२
पौष,शुक्ल पक्ष,नवमी ,शनिवार
विक्रम संवत २०७९
मोबाइल न. – 8757227201
ई-मेल – mk65ktr@gmail.com