हादसा
हादसों से डरों मत,
कवायद जारी रख,
पर परखने से पहले,
हंस खुद को परख
जन्म हुआ जिस तरहा,
वो भी एक हादसा था,
चले जाना है इक दिन.
वो भी इक हादसा ये भी.
हादसों से हो सामना,
घटना से भागना क्यों,
लड़ने को तत्पर क्यों.
हो जाये सामने इसी पल.
स्थगन से समूह बढ़ेंगे.
खेल होने वाले है भारी,
बन जायेगी बेताब पच्चीसी,
देह श्मशान की ओर बढ़ेगी.
जन्म को मान लो इक हादसा,
फिर कौन श्रेष्ठ, कैसा खालसा,
दूरी बनाऐ रख, जरा से फासले
तुमही हो हादसे, जीवन तुम्ही से
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस