हां तभी नववर्ष होगा
हां तभी नववर्ष होगा
दूसरों की हर खुशी में,खुशी होना जानते हैं ।
और की श्रद्धा, वहाँ भी, सर झुकाना जानते हैं ।
जनवरी नव वर्ष उनका,हर्ष हमको भी बहुत है।
प्रतिपदा नव वर्ष अपना, हम मनाना जानते हैं।
शीत की ठिठुरन मिटेगी,
गगन से कोहरा हटेगा।
चीर कर जब शीत ऋतु को,
सूर्य अंबर में खिलेगा ।
हाँ तभी नववर्ष होगा ।
हर दिशा में रंग होंगे,
आनंद और उमंग होंगे।
धुंध धरती से हटेगी ,
हर्ष और बस हर्ष होगा ।
हाँ तभी नव वर्ष होगा।
दिन बड़ा दिनमान होगा,
रात्रि का आँचल घटेगा ।
प्रकृति का श्रृंगार होगा,
इक नया उत्कर्ष होगा।
हाँ तभी नववर्ष होगा।
पतझड़ों का अंत होगा,
सूर्य का अवतंस होगा।
आम्रतरु पर बौर होगा,
कोकिला का गान होगा।
हाँ तभी नववर्ष होगा।
ओस के कण बिखर करके,
अन्न के मोती ढलेंगे ।
सब भरे खलिहान होंगे,
कृषक घर झूले डलेंगे।
हाँ तभी नव वर्ष होगा।
वनों में महुए पकेंगे,
पवन मादक गंध लेंगे ।
फाग का उत्सव मनेगा,
मुखर सब अनुबंध होंगे।
हाँ तभी नव वर्ष होगा।
प्रेमियों के हृदय पागल,
भ्रमर से गुनगुन करेंगे।
कीट मधु की प्यास लेकर,
पुष्प को चुंबन करेंगे ।
हाँ तभी नव वर्ष होगा।
चैत्र शुक्ला प्रतिपदा को,
शुरू शुभ नवरात्र होंगे ।
सूर्य उत्तर में बढ़ेंगे,
पुलक सब के गात्र होंगे।
हाँ तभी नव वर्ष होगा।
हाँ तभी नव वर्ष होगा।
इंदु पाराशर