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30 Aug 2017 · 2 min read

हर पल

आप हर पल हर क्षण याद आते हैं,
जैसे आज भी आप ही
मेरी श्वासों की बागडोर चलाते हैं।
आती है जब-जब गरमी की ऋतु,
आंखों में मेरी भर जाते हैं अश्रु।
धूप में जब हम होते थे घुमंतू,
पापा की आंख देख कर,
बन जाते थे डर कर बजरबट्टू।
परन्तु उस वक्त ठंडे छींटे देता था हमें,
मांँ के हाथ का बना,
कैरी का पना और मीठा- मीठा सत्तू।
जब भी आता है बारिश का मौसम,
आंखें मेरी हो जाती हैं नम।
भीगे भागे आते थे हम,
परन्तु
पापा की डांट भी लगती थी कम।
जब माँ के हाथ के मिल जाते पकोड़े,
गरमागरम।
फिर आती है जब सर्दी की बहार,
यादों के झरोखों में झांक आंखें
भर आती हैं बारम्बार।
जाड़े की सरद बयार,
उस पर मांँ का,
मीठा- मीठा प्यार।
मस्ती का मौसम और,
सर्दी में गर्म कपड़े न पहनना,
इस पर पापा का जम कर बरसना।
पर उस डांट का डर न लगता था इतना,
क्योंकि मांँ के बनाए,
दाल के पकौड़े और गाजर का हलवा।
की खुशबुओं से ही,
महक उठता था हमारा मनवा।
जब पड़ते कभी बीमार
तब पापा की दवा,
और मां की सेवा,
का न था कोई सानी।
इस तन- मन पर लिखी है,
माता – पिता के प्यार की अमिट कहानी।
पापा के गुस्से में भरा उनका प्यार,
और मां के प्यार में झिड़की भरा दुलार।
इतना अनमोल था आप के संग हमारा संसार।
हम तो यह जानते हैं कि,
आप का स्नेहिल ममत्व आज भी,
भरा है हमारे मन में।
आप चाहे मौजूद हों या न हों,
सांसें आज भी आप ही चला रहे हैं,
इस तन में।

रंजना माथुर दिनांक 25 /07 /2017
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना )
copyright

Language: Hindi
355 Views
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