*हर पल मौत का डर सताने लगा है*
हर पल मौत का डर सताने लगा है
जाने अनजाने ही सही
अपनों से बिछड़ने का ग़म
तकदीर में लिखा नजर आने लगा है।
सारी ख्वाहिशे दफन सी हो गई है
एक दूसरे से मिलने की चाहत कम हो गई है
कुछ नहीं है माना हाथ में हमारे
सांसों की डोर एक दूसरे से
टूटती सी नजर आने लगी है।
कर्म करने के लिए पथ पर चल तो पड़े हैं
लेकिन मंजिल बड़ी दूर नजर आने लगी है
सब कुछ थम सा गया है वक्त के साथ
वक्त की यही करामात हमको डरने लगी है।
हरमिंदर कौर, अमरोहा (उत्तर प्रदेश)