हर कोई खुद से ही तंग है
हर कोई खुद से ही तंग है
मेरी भी मुझसे ही जंग है
तन टूटा-सा है भीतर से
पर मन बाहर सबके संग है
अब तन्हाई के इस रंज में
ग़म का एक नया ही रंग है
आँसू मुस्कान में छिपते रहे
यूँ पीने का अपना ढंग है
कपड़े तन को ढाँपे हैं पर
मन आदम युग से ही नंग है