हरि प्रबोधिनी एकादशी
हरि प्रबोधिनी एकादशी,जागे हरि योग निद्रा त्याग।
वापस लौटे पाताल से, घड़ियां हुईं सभी शुभ आज।
पावन कार्तिक मास का, है शुक्ल पक्ष उत्तम संयोग।
सजे बन शालीग्राम दूल्हा,विवाह शुभ तुलसी के साथ।
घर घर जले दीप कर पूजन, गुड़ गन्ने का मधुर भोग।
सिंघाड़ा और शकरकंद से, पूजित प्रभु हरें सकल रोग।
धूप दीप जगा कर कर लो, हरि को निज मन में याद।
करुणापति सुनेंगे आज सब , भक्त करे मिल फरियाद।
पावन भक्ति स्नान में सारे, मिट जाते संशय और क्लेश।
एकादशी के इस पावन व्रत से, मिटे सब पाप और दोष।
हाथ जोड़ हरि से विनय यह, करुणा दृष्टि करो हे नाथ ।
शरण हम आपकी आ गए, रखिए निज कृपा का हाथ।
स्वरचित एवं मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश