हम हिंदुस्तानी
हम दूर से भले ही,बटें बटें से लगते है,
माँ भारती के लिये तो, इकट्ठे डटते है।
कँही ग़लतफ़हमी है, मोती बिखरे हुये है,
देशप्रेम के धागें में, बहुत कसे हुये है।।
तोड़ने की कोशिश में, दुश्मन भी जुटे है,
जाती,धर्म,भाषा,क्षेत्र की बातों में लूटे है।
विविधता से इतना,भ्रमित न होना तुम,
अनेकता में एकता का, हम मंत्र रटे है।।
होते कुछ मौकापरस्त, चिंगारी लाने में,
जयचन्द भी होते है, पृथ्वीराज हराने में।
वो सीख पुरानी है, हम सब हिंदुस्तानी है,
मोती है हम निखरे, एक माला बनाने में।।
(रचनाकार कवि-डॉ शिव “लहरी”)