*** हम मौन रहे तो ***
हम मौन
रहे तो
ऐसे कई
डांगाबास
घटित होंगे
क्यों
भीतर ही भीतर
सहते हो
क्यों
अपने मन की
नहीं कहते
क्या
जोर जबरदस्ती
है तुम पर
क्या
औरों से
इतना डरते हो
है वक्त नही
अब डरने का
है जोश तो
कुछ करने का
क्यों
दलित -दलित
चिल्लाते हो
क्या
और नही है
तुमसे मुफ़लिस
क्या
रोते है वो
अपनी
हालत पर
संघर्ष नही
जब तक करते
यों बेमौत
रहेंगे हम मरते
फिर
औरों की ओर
है हम तकते
करेंगे सहाय
क्या
वो अपनी
जो अपनी रोटी
को तकते है
बिकते ईमान
धर्म यहां पर है
क्या जाति का दम
तुम भरते हो
हो अन्यायी
चाहे जो भी
उस पापी का
उद्धार करो
सम्भलो
जाति के दीवानों
अब तो कुछ
तुम सुधार करो
पीड़ित पीड़ित
होता है
उसका न जाति
धर्म कोई
जैसे
आततायी
हो कोई
मजहब उसका
न है कोई
फिर काहे
करते हो
बंटवारा
इस स्वच्छ सुंदर
समाज का तुम
ज़हर ना घोलो
दीवानो
इन्सां को इन्सां
रहने दो
मत दोहराओ
इन बातों को
फिर और घटित
न हो डांगाबास ।।
?मधुप बैरागी