हम भी गम सहते कहाँ तक आ गये
हम भी गम सहते कहाँ तक आ गये
दर्द खतरे के निशाँ तक आ गये
राज दिल के छिप न पाये दिल में ही
लफ्ज़ बनकर वो जुबाँ तक आ गये
मिल ही जाएगी कोई मंज़िल हमें
अब कदम भी कारवाँ तक आ गये
कीमती सामान हैं, रिश्ते नहीं
लोग घर से अब मकाँ तक आ गये
हार कर भी हार जो मानी नहीं
खाक से हम आसमाँ तक आ गये
साँसों की माला पिरोते ‘अर्चना’
आखिरी अब इम्तिहाँ तक आ गये
20-01-2018
डॉ अर्चना गुप्ता