“ हम बापू के हैं तीन बंदर “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
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मेरी आँखें बंद
रहने दो ,
कानों से नहीं
सुन सकता हूँ !
मुंह पर हैं ताले
लगे हुए ,
देख ,सुन ना
बोल सकता हूँ !!
ना
अच्छे दिन
के सपने
कभी मैं
देख सकूँ !
ना विकास को
अपने माथे
मैं चूम सकूँ !!
आँखों को पतली
चादर से
रातों में भी
ढक लेता हूँ !
मुंह पर हैं ताले
लगे हुए
देख ,सुन ना
बोल सकता हूँ !!
दर्द ,व्यथा
और दुख का
क्रंदन मैं
सुन ना सकूँगा !
घृणित हत्याओं
के खूनी को
मैं ना जान सकूँगा !!
परदे कानों के
फट चुके
नहीं कुछ मैं
सुन सकता हूँ !
मुंह पर हैं ताले
लगे हुए
देख ,सुन ना
बोल सकता हूँ !!
मंहगायी ,बेरोजगारी
और
भ्रष्टाचारी ने
पाँव जमाए !
देश में संपत्ति
की लूट मची
जनता के मुंह में
ताला लगबाए !!
घुट -घुट के
मरता हूँ यारों
कुछ ना बोल
सकता हूँ !
मुंह पर हैं ताले
लगे हुए
देख ,सुन ना
बोल सकता हूँ !!
मेरी आँखें बंद
रहने दो
कानों से नहीं
सुन सकता हूँ !
मुंह पर हैं ताले
लगे हुए
देख ,सुन ना
बोल सकता हूँ !!
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
१५,११,२०२१