हम पागल प्रेमी हईं, लोग कहे नादान
दुश्मन के भी दोस्त हऽ, भारत देश महान।
आँख टरेरल बंद कर, ऐ मूरख नादान।।
झूठे ललकारत हवे, दिखलावत बा शान।
कई बार हारल हवे, चीन पाक नादान।।
लालच में अझुरा गइल, मन पापी बइमान।
माटी पर अगरा रहल, मूर्ख मनुज नादान।।
तन माटी के पिंजरा, मनवा पवन समान।
नादानी देखीं तनी, अगराइल इंसान।।
नादानी अतने भइल, तहके बुझनी जान।
तहरी आज फरेब में, फसनी हम नादान।।
इश्क भइल तहसे प्रिये, भुला गइल मुस्कान।
हम पागल प्रेमी हईं, लोग कहे नादान।।
जाति धर्म करते करत, नेता बनल महान।
सत्य बाति समझे कहाँ, ई जनता नादान।।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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