*** हम तो बहके हुए ख़्वाब हैं ***
हम तो बहके हुए रातों के ख़्वाब है
क्या रखेंगे ख़्याल अपना जो आप हैं
दिल में उठता है धुवां या ये भाप हैं
हम तो बहके हुए रातों के ख़्वाब हैं
ना ठिकाना कोई एक, जो ख़्वाब हैं
हम तो बहके हुए रातों के ख़्वाब हैं
बन्दआँखों से देखे रातों के ख़्वाब हैं
दिन-उजालों में काफ़ूर वो ख़्वाब हैं
हम तो बहके हुए रातों के ख़्वाब हैं
होते नहीं जो पूरे अधूरे वो ख़्वाब हैं
क्या रखेंगे ख़्याल अपना जो आप हैं
हम तो बहके हुए रातों के ख्वाब हैं ।।
?मधुप बैरागी