हम तो बस ….
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बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
22 22 22 22 22 22
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हम तो बस याद की लकीर लिए बैठे हैं
एक खंडहर लूटी जागीर लिए बैठे हैं
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तीरे नजर का जख्म तेरे मकसद में शामिल
जंग लगी हम अलग शमशीर लिए बैठे हैं
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एक पहेली बुझाती थी रोज हंसी तुम्हारी
आज उदास तेरी तस्वीर लिए बैठे हैं
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होंठ हमने सी लिए थे कि राज का फाश न हो
इन पावो तेरी जंजीर लिए बैठे हैं
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कोई आग लगा कर तमाशा देख रहा है
जलन फफोले हम तासीर लिए बैठे हैं
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग