हम तो अपनी बात कहेंगें
बुरा लगे लग जाए तुमको
दिन को क्यों फिर रात कहेंगें?
हम तो अपनी बात कहेंगें
दीन-हीन-लाचार हैं जो फ़िर
युवा-वृध्द-बीमार हैं जो फ़िर
नारी को इक आशा देकर
फिरते देख दिलासा देकर
नन्हें हाथों को इक रोटी
हर हाँथों को रोजी-रोटी
देख किसानों की पीड़ा को
और जवानों की पीड़ा को
उनकी आवाज़ों को स्वर दे
लोहे पे इक घात कहेंगें
हम तो अपनी………
पर-पीड़ा को मुखरित होकर
गाएँगें उद्देलित होकर
झूठ को झूठ कहेंगें लेकिन
सच को मरने ना हम देंगें
गाँवों की आवाज़ दबाकर
शहरों को चढ़ने ना देंगें
सरकारों को याद दिलाकर
उनके वादों को पूँछेंगें
आमजनों के हक को लेकर
तीख़ी-तीख़ी बात कहेंगें
हम तो अपनी…….
इन सारे मुद्दों को लेकर
इक भी मौत अगर होगी
शासन जिम्मेदारी लेगा
इक भी मौत अगर होगी
फाँसी पे चढ़वाकर जनता
हर इक जश्न मनाएगी फ़िर
तानाशाही एक चले ना
जनता के सेवक हैं सब
खैंच!पटक के दे दे मारे
सीधी-सीधी बात कहेंगें
हम तो अपनी……….
अनिल कुमार ”निश्छल”
हमीरपुर, बुंदेलखंड
उ०प्र०