” हम तारे हैं नभ के सारे “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
=================
नभ में तारों के दीप सजे
जगमग -जगमग सब करते हैं !
काली अंधियारी रातों में
पथ दर्शक सारे बन जाते हैं !!
दिशा भ्रांति जब होती है ,
ध्रुबतारा को देखते हैं !
समय क्षितिज के दर्पण को
सप्तऋषि दिखलाते हैं !!
तम की रातें सुलझ जाती है ,
रास्ते स्वयं निकाल जाते हैं !
काली अंधियारी रातों में ,
पथ दर्शक सारे बन जाते हैं !!
नभ में तारों के दीप सजे
जगमग -जगमग सब करते हैं
काली अंधियारी रातों में
पथ दर्शक सारे बन जाते हैं !!
कुछ तारे ऐसे भी हैं जो
मौनता की कसम खायीं हैं !
मद्धिम शिथिलता में रहकर ,
अपनी पहचान बनायीं हैं !!
एक संग रहकर ये सब ,
प्रकाश पुंज बन जाते हैं !!
काली अंधियारी रातों में ,
पथ दर्शक सारे बन जाते हैं !!
नभ में तारों के दीप सजे ,
जगमग -जगमग सब करते हैं !
काली अंधियारी रातों में
पथ दर्शक सारे बन जाते हैं !!
हर रात दिवाली होती है ,
अंबर सारे खिल जाते हैं !
धरती को रोशनी मिलती है ,
सब झुमके मौज मानते हैं !!
कोई बड़ा नहीं छोटा है ,
सब प्रकाश बन जाते हैं !
काली अंधियारी रातों में
पथ दर्शक बन जाते हैं !!
नभ में तारों के दीप सजे ,
जगमग -जगमग सब करते हैं !
काली अंधियारी रातों में ,
पथ दर्शक सारे बन जाते हैं !!
====================
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका