हमें फुरसत कब इतनी कि ——
हमें फुरसत कब इतनी, कि सोचे इस बारे में।
तलाशे दिल हम ऐसा, पसंद जो दिल को आ जाये।।
बताओ तुम भी कुछ हमको, निकाले वक़्त हम कैसे।
कि देखें हम सूरत ऐसी, पसंद जो दिल की बन जाये।।
हमें फुरसत कब इतनी——————————-।।
सुबह से शाम तक हम तो, लगे रहते हैं कामों में।
रात को आकर हम घर को, खो जाते हैं किताबों में।।
नहीं है चैन इस दिल को, कि सोचे इस बारे में।
मिले दिल उससे जाकर, कि दिल उसका हो जाये।।
हमें फुरसत कब इतनी————————।।
नहीं काबिल हम इतने, पसंद किसी को आ जाये।
ना तोड़े वो वफ़ा हमसे, हमपे कुर्बान हो जाये।।
यकीन कौन हमपे करता है, हमें कौन प्यार करता है।
कि सोचे हम भी ऐसा, राजी यह दिल भी हो जाये।।
हमें फुरसत कब इतनी————————।।
कभी की थी यह कोशिश भी, मगर वो चाहते थे दौलत।
अपना लहूदान किया उनको, मगर वो समझे नहीं मोहब्बत।।
यकीन हम किस पर करें, साथी अपना बनाने को।
कि समझे हम भी ऐसा, साथी हम उसके बन जाये।।
हमें फुरसत कब इतनी————————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)