” हमें धनुर्धर बनना है “
डॉ लक्ष्मण झा”” परिमल ”
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कहने के लिए हम कह देते हैं …..”बात सीधी करें ..घुमाके बातों को कहने से समझना थोडा मुश्किल हो जाता है “! ……पर हमें भगवान ने अलग -अलग सांचे में ढाल कर हमारा निर्माण किया है ! रंग रूप थोड़े भिन्य तो होना लाजमी है ! पर इंद्रियां हमलोगों को प्रायः प्रायः एक जैसी ही मिलीं हैं ! इन इंद्रियों में ज्ञान इंद्रिय का समावेश हमलोगों में सभवतः बिना पक्षपात के किया गया ! …..अब हम विभिन्य परिवेशों में रहकर ज्ञान का समुचित विकास कर पायें अन्यथा अपने अकर्मण्यताओं से ज्ञान के प्रकाश दीपक को टिमटिमाने दें !….. तरकस में तीरों को यदि बहुत दिनों तक रखा जाये तो उनमें जंग लग जायेंगे ! ……हमारा शस्त्र हमारी लेखनी ,हमारी भाषा और हमारे विचार हैं ! …..जब तक हम लिखेंगे नहीं …जब तक हम बोलेंगें नहीं और …जब तक अपने विचारों को जग जाहिर ना करेंगे ..तो हमारे भी शस्त्र बेकार हो जायेंगे और हम शायद ही धनुर्धर बन पायें ! ….वैसे तो हम विभिन्य प्रक्रियाओं से अपनी बातें लोगों तक पहुंचा सकते हैं …पर ‘कविता’ वाली विधा हमें बहुत रास आती है !….. कविता के माध्यम से हम बहुत सारी बातें लोगों को बता सकते हैं !….. वैसे जो बातें लेख ,ब्लॉग ,कविता और विचारों में व्यक्त करते हैं वे बातें कभी कभार व्यक्तिगत प्रहार का रूप धारण कर सकती है ! …फेसबुक एक विशाल रंगमंच बन गया है ! हम अपनी कलाओं का प्रदर्शन भरपूर कर सकते हैं ! …….पर व्हात्साप और मैसेंजर पर बेवजह उधार के पोस्टों को पोस्ट करके अपनी प्रतिभा को जंग लगाने से हमें बचाना होगा ! व्हात्साप में हम और समीप हो चुके रहते हैं ! अच्छी बातें ,लेखों ,कविताओं और विचारों को हमें भली भांति पढना और अपनी प्रतिक्रिया देना हमारा संकल्प होना चाहिए ! हमें यदि धुरंधर धनुर्धारी बनना है तो हमें यह नहीं कहना होगा …”बात तो हम सीधी समझते हैं पर आपकी लेख की भाषा मेरे पल्ले नहीं पड़ती”!!!!
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डॉ लक्ष्मण झा”” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका