हमारी शाम में ज़िक्र ए बहार था ही नहीं
भरे जहां में कोई मेरा यार था ही नहीं।
किसी नजर को मेरा इंतजार था ही नहीं।।
न ढूंढिए मेरी आंखों में रतजगों की थकान।
ये दिल किसी के लिए बेकरार था ही नहीं।।
सुना रहा हूं मोहब्बत की दास्तां उसको,
मेरी वफ़ा पे जिसे एतबार था ही नहीं।।
– कतील शिफाई