हमारी ईद हो जाए
जरा ठहरो मुकद्दर आजमाकर देख लेता हूँ
इन्हीं बंजर जमीं में गुल खिला कर देख लेता हूँ
खुशी रहती नही आँगन मेरे ज्यादा दिनों तक तो
खुदाया अब गमों से घर सजाकर देख लेता हूँ
जो किस्मत का लिखा होता अगर होता वही है तो
हवाओं में चरागों को जलाकर देख लेता हूँ
तुम्हारी दीद हो जाए हमारी ईद हो जाए
मुहब्बत है अगर सच्ची बुलाकर देख लेता हूँ
कैसे पहचानता मुझको अँधेरा है घना छाया
जरा सी रौशनी को दिल जलाकर देख लेता हूँ
– ‘अश्क़’