हमने ही अब गम गिनाना कम किया है
हमने ही अब गम गिनाना कम किया है
ज़िन्दगी ने कब सताना कम किया है
रोज सपने टूटते रहते हमारे
पर नहीं उनको सजाना कम किया है
अब नहीं हैं वो बसंती सी बयारें
कोकिला ने गीत गाना कम किया है
कैद में तकनीकि के जो आज बचपन
बचपना उसने दिखाना कम किया है
शान के ही दायरे में बँध गया यूँ
आदमी ने मुस्कुराना कम किया है
आ गया है ‘अर्चना’ जो जख्म सीना
आंसुओं को भी बहाना कम किया है
07-02-2018
डॉ अर्चना गुप्ता