हमनी के बचपन
हमनी के बचपन के सुनऽ कहानी,
जवना के नइखे अब कवनो निशानी।
मिले ना पिज़्ज़ा, ना बर्गर भा डोसा,
डोसा के छोड़ऽ मिले ना समोसा।
हाथे प आवे ना कहियो अट्ठन्नी,
दस बीस पइसा भा मिले चउअन्नी।
दसे गो लेमचुस में बीस लोग खाव,
मामा के दाँते से सगरी फोराव।
लेमचुस आ भूजा के रहे जमाना,
लन्चे में बाबू हो मिले ना खाना।
नरकट के कलम आ खड़िया के घोल,
माचिस के तास रहे साथ अनमोल।
सलाखे के पटरी राखल जा डोरा,
चेपी आ गोली से भरि जाव झोरा।
सूती के बोरा, शीशो के पटरी,
जवना प सेल भा पोतिंजाँ कजरी।
गेल्हीं जाँ पटरी खूबे रगरि के,
मुँह होखे करिया बाबू झगरि के।
नहरी में होखे तब खूबे नहान,
उ मस्ती के लौटी ना कबो जहान।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- २२/०१/२०२०