#हँसती है ज़िन्दगी तो ज़िन्दा हैं
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◆ #हँसती है ज़िन्दगी तो ज़िन्दा हैं ◆
तालीम वो तस्लीम न कर जो खुशबू नहीं बोती
इश्क़ और नफ़रत की ज़ात एक नहीं होती
मेरे सिवा भी और तेरे कई मुकाम हैं
हँसती है ज़िन्दगी तो ज़िन्दा हैं मुर्दे में हरारत नहीं होती
पसरा हुआ है चुप का साया मेरे घर से तेरे दर तलक
हैरां हूँ मैं परेशां नहीं अब वहशत नहीं होती
दिन निकलने से पहले न निकला दिल से ख़्याल तेरा
राह बदलके निकला निकला आँख से नफ़रत का मोती
गजरे की बात छेड़ न न कजरे का कर ज़िक्र
साहिबे – दौल के मुक़द्दर में यह गुरबत नहीं होती
आख़ीर तालिबे – इल्म को इल्हाम यह हुआ
तीरग़ी होती है वक्ते शब जहालत नहीं होती
* शेष शुभ है ! *
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर, हरियाणा
९४६६०-१७३१२