स्वाभिमान
उस रात किसी ने मुझे झिंझोड़कर जगा दिया ,
उठकर देखा तो सामने एक साया था ,
मैंने पूछा कौन हो तुम ?
उसने कहा मैं तुम्हारा स्वाभिमान हूँ ,
अपने स्वार्थ के लिए तुम मुझे भूल चुके हो ,
अपने आप से तुम समझौता कर चुके हो ,
औरों के हाथों की कठपुतली बन चुके हो ,
तुम्हे ये पता नहीं है कि एक दिन तुम्हें
नकार दिया जाएगा ,
फिर खोया हुआ समय लौटकर
ना आएगा ,
अब भी समय रहते,
स्वार्थ की गहरी नींद से बाहर आओ ,
अपने अंतस्थ मुझे जगाओ ,
वरना, क्षोभ के सिवा कुछ हाथ न लगेगा ,
पश्चाताप की अग्नि में यह जीवन जलेगा।