स्वर्णमुखी छंद
स्वर्णमुखी छंद
मानो चाहे मत मानो तुम।
हृदय मानता सिर्फ तुम्हीं को।
देता सबकुछ एक तुम्हीं को।
जानो चाहे मत जानो तुम।
तुझसे ही मन बोला करता।
तुम्हीं बसे हो एक मात्र प्रिय।
तुझे पुकारे सदा सतत हिय।
हर क्षण पास तुम्हारे रहता।
स्वर्ग लोक से तुम आए हो।
तुझ सा और नहीं जगती में।
तुम्ही सर्व अम्बर धरती में।
गीता गीत तुम्हीं गाए हो।
तुम्हीं दिव्य मेरे प्रियतम हो।
सत्य संग में अति अनुपम हो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।