स्वर्ग से सुन्दर
स्वर्ग से सुन्दर
“क्या बात है सुरेखा जी, आजकल तो बहुत खुश लग रही हैं आप ?” पड़ोसन ने पूछा ।
“हां खुशी की ही तो बात है ममता जी । अब मुझे एक नई सहेली जो मिल गई है ?” सुरेखा ने बताया ।
“नई सहेली ? कौन है वो सुरेखा जी, जिससे मैं अब तक नहीं मिल पाई ? ममता ने आश्चर्यचकित होकर पूछा ।
“ममता जी, मैं अपनी बहू उर्मिला की बात कर रही हूं । बेटी की विदाई के बाद मैं लगभग अकेली-सी हो गई थी । दिनभर घर में बैठे-बैठे बोर हो जाती थी । अब बहू आ गई है, तो उसके साथ मेरा समय अच्छा बीत रहा है । नौकरीपेशा होने के बावजूद वह एकदम सुबह उठ जाती है और मॉर्निंग वॉक के लिए निकल जाती है । यही नहीं, पहले दिन से ही वह मुझे भी अपने साथ में ले जाती है । कहती है कि दोनों साथ रहेंगे, तो बोरियत महसूस नहीं होगी । पता है आपको जबसे मैंने मॉर्निंग वॉक शुरू की है, तब से मेरे घुटनों का दर्द भी बहुत कम हो गया है ? अब तो हम सास-बहू दोनों छुट्टी के दिन अक्सर घूमने या फिर शॉपिंग करने भी निकल जाती हैं ।” सुरेखा ने प्रसन्नचित्त मन से बताया ।
“अच्छा, ये तो बहुत ही अच्छी बात है सुरेखा जी ? पर ज़रा संभल के रहिएगा, बहुओं को ज्यादा सर चढ़ा कर रखना ठीक नहीं । वैसे भी आजकल की लड़कियों का कोई भरोसा नहीं । कब क्या गुल खिला दें, कह नहीं सकते ?” ममता जी ने स्त्री सुलभ लहजे मे कहा ।
“आपकी बात सही भी हो सकती है ममता जी, पर मैं यह कैसे भूल जाऊं कि कभी मैं भी एक बेटी फिर बहू थी और आज एक बेटी की माँ भी हूँ । यदि मैं स्वयं अपनी बहू का मान नहीं रखूँगी, तो उससे कैसे सम्मान की उम्मीद कर सकूंगी ?” सुरेखा ने सहज भाव से कहा ।
“बिलकुल सटीक बात कही है आपने सुरेखा जी । ताली तो दोनों हाथ से ही बजती है । किसी ने क्या खूब कहा है कि औरत यदि चाहे, तो घर को स्वर्ग बना सकती है …”
“और अगर सास-बहू दोनों चाहें, तो वही घर स्वर्ग से भी सुन्दर हो बन सकती है ।” सुरेखा जी ने ममता जी की बात बीच में ही काटते हुये कहा और दोनों ठहाका मार कर हंसने लगीं ।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर , छत्तीसगढ़