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स्वर्ग से उतरी परी होती हैं बेटियाँ
खुशियों से भरी होती हैं बेटियाँ।
जिस घर में ये नहीं है मौजूद
वहाँ नहीं है सुख का वजूद।
अमृत की बूंदें हैं बेटियाँ
ईश्वर का आशीष हैं बेटियाँ।
जहाँ नहीं बेटी की चहक
वहाँ नहीं खुशियों की महक।
पावन गंगा जल हैं बेटियाँ
निर्मल निश्छल मन हैं बेटियाँ।
जहाँ न इनकी हंसी किलकारी
वहां न होती कभी खुशहाली।
पूजा हम देवी की करते
वह है नारी रूप ईश्वर का।
जन्म हम माता की कोख से लेते
वह भी एक रूप नारी का।
फिर क्यों जन्म से पहले होते
भ्रूण की जांचें और हत्याएं।
यदि उन जांचों में पाया जाता
एक प्यारा-सा रूप नारी का।
जिसको सब कहते हैं बेटी।
मेरा तो यह अटल सोच है
कि जिस ने मारी कोख में बेटी।
उसने अपने विनाश को दिया निमंत्रण
और अपने जीवन से खुशियाँ मेटीं।
—रंजना माथुर दिनांक 25/09/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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