(1ग़ज़ल) बंजर पड़ी हैं धरती देखें सभी नदी को
ग़ज़ल
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बंजर पड़ी हैं धरती देखें सभी नदी को
जल बिन जो सूखती है कैसे भरे कमी को ।।
जब कर लिया मुहोब्बत में तुमसे बंदगी को
हमने तो प्रीत माना हर जन्म आप ही को ।।
यादों में तुम सताते करवट बदलते रहते
बस आस भर नज़र से देखूं जो चांदनी को ।।
झूठों का है पुलिंदा सरकार के फसाने
चुप रहकर बढ़ाती है और मुफलिसी को।।
यादों के पल हमारे रौनक जो दिल में लायें
मिलती थोड़ी खुशी तनहाइयां सी जिंदगी को ।।
बेरहम जिंदगी है भायें नहीं किसी को
हरदम जो अश्क दे पोंछे कौन इस नमी को।।
जी ले तु जिंदगी को परवाह अब न करना
सुन “ज्योटी”तुम सदा रखना संग सादगी को।।
ज्योटी श्रीवास्तव (jyoti Arun Shrivastava)
अहसास ज्योटी 💞✍️