स्वप्न ….
स्वप्न ….
चोट लगते ही छैनी की
शिला से आह निकली।
जान होती है पत्थर में भी
ये अहसास हुआ आज।
छीलता रहा पत्थर को
निकालना था एक स्वप्न
बुत की शक्ल में
उसके गर्भ से।
रो दी शिला
जब स्वप्न
बुत में धड़कने लगा।
क्या हुआ जो
रिस रहा था खून
मूर्तिकार के हाथ से।
सुशील सरना/11-1-24