सॉप और इंसान
11. सॉप और इंसान
सॉपों की बस्ती में देखा, नाग विषैले भाग रहे ।
घुस आया इंसान एक सब डर के मारे जाग रहे ।।
डरता ना इंसान सॉप अब इंसानों से डरता है ।
काटे चाहे कोई किसी को किन्तु सॉप ही मरता है ।।
चाहे विष हो या कालापन या हो टेढ़ी-मेढ़ी चाल | इंसानों से जीत न पाते, सॉपों को बस यही मलाल ||
विष को खाना विष को पीना और विषवमन करते जीना ।
छोड़ दिया है सॉपों ने अब इंसानी फितरत से जीना ||
लिए सॉप के फन हाथों में फिरते हैं ये लोग महान । इस डर से ये सॉप मर रहे, कहीं काट ना ले इंसान ।।
सॉप सपेरा जादू टोना, ये सब बात पुरानी है ।
अब इंसानों की फितरत से सॉपों में हैरानी है ।।
सॉप काटते नहीं जभी तक पड़े पूँछ पर पॉव नहीं । कौन कहाँ कब कैसे काटे इंसानों का ठॉव नहीं ।।
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प्रकाश चंद्र , लखनऊ
IRPS (Retd)