*सूर्य के दौड़े घोड़े (कुंडलिया)*
सूर्य के दौड़े घोड़े (कुंडलिया)
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घोड़े हरदम दौड़ते, सूरज के तैयार
सुबह हुई तो लग गए, जाने को उस पार
जाने को उस पार, नई ऊर्जा से चलते
उसी कार्य पर रोज, खुशी से भरे निकलते
कहते रवि कविराय, बिना खाए ही कोड़े
आदिकाल से तीव्र, सूर्य के दौड़े घोड़े
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उ. प्र.) मोबाइल 99976 15451