“सूर्य कृपा “
नमस्कार दोस्तों मैं जसवंत , जालौर (राजस्थान) से आपके बीच एक और अनोखी कविता आप लोगों तक पहुंचाने आया हूं। दोस्तों यह कविता इस जगत के उजियाले सूर्यदेवता पर लिखी ” सूर्य कृपा” कविता लेकर आया हूं। मैं निवेदन करता हूं , आशीर्वाद दीजिएगा।
जगत का उदय भी तू हैं
जगत का ओझल भी तू हैं
तू ही तप है तू तपस्या
तू विकास तू विनाश
मानव के विकास में तेरा प्रकाश ही एक आश है
मंत्र तू है यज्ञ तू है तू ही जीवन की जलती ज्योत है
अंग तेरे अंग में एक प्रचंड ज्ञान हैं,
हनुमान जी से ज्ञान ले वह प्रचंडज्योत है
धरती से ब्रह्मांड तक आराधना भी चलती रहे
लपट लपट वह ज्योत भी जगी रहे
प्रभात काल पे देह लाल हैं
मध्यंत प्रचंड है तो तेज भी अखंड है
तुझे सूक्ष्म माने ये संसार का घमंड है
चमक चमक है स्वर्ण प्रकाश प्रभो तुम्हारे देह पर
तुम्हारी चमक पड़े प्रभु हमारे शीश पर
© जसवंत
हर बार की तरह इस बार भी आपके सुझावों को तहे दिल से स्वागत करते हैं सुझाव जरूर दीजिएगा और आपके आशीर्वाद की बहुत जरूरत है